एक अभागी मां के लिए इससे बुरी बात क्या बारे हो सकती है की उसकी ही आंखों के समन उसके बच्चे की लाश जल रही हो क्या बिताती होगी , उस मा के मन पर बरे प्यार से पाला था उसे पता नही क्यों वह इतनी जल्दी क्यों ईश्वर को प्यारा हो गया था क्या गुनाह था मेरे बबलू का वह तो बड़ा प्यारा बच्चे था अंतिम संस्कार के समय पंडित जी ने बच्चे की लाश पर जल छिड़कते हुए बुदबुदाया हे भगवन बच्चे की आत्मा को शान्ति प्रदान करना इसे स्वर्ग में स्थान प्रदान करना उधर मां शांति रो रो कर पागल हो रही थी बार बार जमीन से उठाकर साइन से लगा रही थी चूम रही थी रो रो कह रही थी जग जा मुन्ने एक बार मुझे मां तो बोल दे धन्य हो जाऊंगी। इधर उधर दौड़ रही थी शांति लगता था उस पर आसमान टूट कर आ गिरा हो। ईश्वर से कह रही थी जगा दो मेरे मुन्ने को। उधर अंतिम क्रिया करवाने आए पंडित जी अधीर होकर बोल रहे थे अब hat जाए आप लोग मुझे अपना काम करने दीजिए। यह जीवन तो क्षण भांगुर हैं। सबको एक दिन जाना, उधर बच्चे के संस्कार के लिए रुके परिजन स्तब्ध थे पर मां काम मन अब भी कह रहा था मेरा मुन्ना जग जायेगा और मां मां कहते कहते मेरे गले से लिपट जायेगा, तब देखना पंडित जी का में क्या हाल करती हूं पर नियति को इस बच्चे के भाग में ऐसा पहले ही लिख दिया था। देखते देखते अग्नि देवता ने मुन्ने को कमजोर शरीर को अग्नि देवता ने अपने आगोश में समा लिया था। क्षण भर में उसका शरीर राख में तब्दील हो गया। मां माथा पकड़कर वही लेट गई, उसके मन में मुन्ने का वही हाथ हुआ चेहरा याद आ रहा था पागल हो रही मां को पूरा विश्वास था कि मेरा मुन्ना सपने में आकर मुझे जरूर जगाएगा, वह मेरे हृदय से लिपट जायेगा। मां का अटूट विश्वास और नियति की इच्छा इसमें कोन भारी पड़ सकता था। वह मेरे बाल रूपी मन में समा रहा था।
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